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yadi kavita ko bina puche hua copy karne par
uchit karvayi kiya jayega
जब तु जन्म लिया कितना मजबूर था
,
ये दुनिया तेरी समझ से भि दूर था,
हाथ पैर भि तुम्हारे अपने ना थे,
तेरे आँखो मेँ दूनिया के सपने ना थे,
तुम्हे चलना सिखाया तुम्हारे मा-बाप ने,
तुम्हे दिल मे बासाया तुम्हारे मा-बाप ने, बचपन के बाद जवानी चडने लगा,
वक्त के साथ तेरा कद भि बढने लगा,
धिरे-धिरे तु कडियल जवान हो गया,
तुझपे सारा जहान मेहरबान हो गया,
एक दिन एक लड़की तुझे भा गयी,
बन के दूलहन वो तेरे घर आ गयी, अब तु मा-बाप से दुर होने लगा,
बिज नफरत का तु खुद बोने लगा,
बात-बात पर तुम उनसे लडने लगा,
याद कर तुमसे मा ने कहा था एक दिन,
बेटा हामारा गुजारा नही तेरे बिन,
सुन कर ये बात तुम्हारी पत्नी तैस मेँ आ गयी,
तेरी पत्नी तेरी अक्ल को खा गयी,
जोश मेँ आके तु ये बात मा-बाप से कहा,
बाप था खामोश ये सब देखते हि रहा,
आज कहता हूँ पिछा मेरा छोड दो,
जो रिशता है वो मुझसे तोड दो,
जओ जाके कहीन काम धन्धे करो, लोग मरते है तुम्ह भी जाके
कही मरो, उसी रात आये तुम्हारे ससुर और साश,
घर पर खाना बना रोज से कुछ खाश,
साश की हुई खुब बडाइ
दुशरे घर मे हो रही थी मा कि पिटाइ,
न देँ भगवान ऐसे सतांन
जो तुले मा-बाप के लेने पर जान
somanshsurya
yuva writer(age=15)
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