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यौन स्वच्छंदता की नीति भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात

yuva lekhak(AGE-16 SAAL)
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भारत के चार महानगरों के अलावा नगरों में युवक-युवतियां आज के समय में कितनी मुक्त या उन्मुक्त हैं, इसका नजारा पार्क, गार्डन, सिनेमा हाल, मार्केट, म्यूजियम, चिडि़या घर आदि स्थानों पर आसानी से देखा जा सकता है। निःसंदेह यौन- सुख एक नितांत अनिवार्य चीज है पर इसका सार्वजनिक जगहों पर खुलकर प्रदर्शन नहीं किया जाना चाहिए। सामाजिक मान्यताओं और परंपराओं को जी भर कर कोसने वाली युवक- युवतियां इस तरह के अनैतिक कार्य को ‘आघुनिकता’ का नाम देती हैं। उनके अनुसार जब अमेरिका, ब्रिटेन, हांगकांग के अलावा सिंगापुर जैसे बड़े-बड़े देशों में युवक- युवतियों को ‘यौन स्वतंत्रता’ प्राप्त है, तो हम भारतीय युवक-युवतियां ही क्यों उनसे पीछे रहें । फिल्मों में भी तो यही सब दिखाया जाता है।
भारत कि राजघानी दिल्ली की बात करें तो लोधी गार्डन, बुद्धा गार्डन, नेहरू पार्क, पुराना किला के अतिरिक्त मजनू का टिला आदि स्थानों पर घुमते हुए आसानी से देखे जा सकते हैं। यकीनन दिनोंदिन बढ़ रहे इस व्यभिचार के लिए युवक-युवतियां तो दोषी हैं ही, साथ ही फिल्मों में बढ़ते ग्लैमर को भी कम दोषी नहीं बताया जा सकता है और तो और लोधी गार्डेन, पुराने किले आदि में सार्वजनिक रूप से यौन -उत्पात मचाना भी किसी प्रकार की आधुनिकता का परिचय नहीं देता।
दिलचस्प बात तो यह है कि बदलते सामाजिक परिवेश और बाहरी देशों की चमक-दमक ने भारतीय युवक-युवतियों में नैतिकता का बिलकुल लोप कर दिया है। विगत दिनों में स्नेह, ममता और त्याग की देवी मानी जाने वाली नारी आज पाश्चात्य – संस्कृति की चकाचौंध में इस कदर अंधी हो गई है कि उसे हमारी पुरातन संस्कृति जो शांति के लिए प्रसिद्ध है तक का स्मरण नहीं रख रही है
दिनों दिन बढ़ रही इस यौन स्वतंत्रता का चाहे कोई असर पड़े या नहीं यह तो भविष्य ही जाने मगर जहां तक प्रश्न वर्तमान का का है यह कहना गलत नहीं होगा कि भारतीय महानगरों एवं नगरों की युवक- युवतियांे में इस अनैतिक यौन-स्वतंत्रता और आधुनिकता इनके दिनचर्चा का अंग बन गया है, कारण हमारे सामाजिक संबंध दहकने लगे हैं जिसका परिणाम आगे अच्छा कतई नहीं साबित होगा।
यौन उन्मुक्तता के संदर्भ में एक रिपोर्ट बताती है कि 21 वर्ष की आयु की 40 प्रतिशत छात्र- छात्राएं शादी होने से पहले ही रतिक्रिया का अनुभव कर चुके हुए होते हैं। जबकि छात्राओं में यह आंकड़ा 70 प्रतिशत को स्पर्श कर रहा है। यह तो है लगभग परिपक्व की बात, लेकिन जहां तक सवाल स्कूली बच्चों का आता है तो यह तथ्य वाकई आश्चर्य कर देने वाला है। दिल्ली के एक आधुनिक इलाके की स्कूली बच्चों के बीच किये गये एक सर्वेक्षण के मुताबिक 13 वर्ष से कम उम्र की 7 प्रतिशत और 16 वर्ष तक की 19 प्रतिशत बच्चे यौन आनंद लेना चाहते हैं पंरतु उचित स्थान और सही साथ के आभाव में फिलहाल वे इसे पाने से बंचित हैं।
भारतीय युवक-युवतियां में अगर यह रूझान इसी गति से दौड़ता रहा तो हमारी भारतीय सभ्यता और संस्कृति जल्द ही नष्ट हो जाएगी और हम चाहते हुए भी इस गौरवशाली पुरातन संस्कृति को नहीं बचा सकेंगे। यदि भारतीय युवक-युवतियों में बढ़ रही इस यौन-स्वच्छंदता और उन्मुक्तता को शीघ्र ही न विराम लगाया गया तो अपनी भारतीय संस्कृति को पाश्चात्य संस्कृति से बचाने में बहुत देर हो चुकी होगी।
आज भारत में बाजारबाद का दौड़ चल रहा है। हर कोई पैसे के पीछे भाग रहा है। सभी लोग बाजारू हो चुके हैं उन्हें समाज और संस्कृति से क्या लेना। उनके लिए तो पैसा ही सबकुछ है। यहां तो युवक- युवतियां पैसों के लिए बिक रहे हैं और जिनके पास पैसा है वह इन लोगों को खरीद कर अपने उंगलियों पर नचा रहे हैं। कुछ बलात्कार की घटना को छोड़कर ज्यादा की संख्या पैसों के कारण हुए हैं0t

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