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स्वास्थ्य के साथ यह कैसा खिलवाड़

yuva lekhak(AGE-16 SAAL)
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भारत सरकार का स्वास्थ्य विभाग जहां एक ओर लोगों के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित रहती है वहीं कई राज्यों में इसकी स्थिति बदतर नजर आती है। उदाहरणस्वरूप यदि झारखंड के रांची को लिया जाए तो यहां की हालत दयनीय है। यहां न तो गरीबों को सही रूप से दवा मुहैया कराई जाती है और न ही स्वास्थ्य विभाग इस ओर सक्रिय नजर आ रही है। यहां के लोगोें का कहना है कि जब यहां के एक दैनिक पत्र ने इस संबंध में खबर प्रकाशित की तो विभाग ने आनन-फानन में देसी औषधालयों (आयुर्वेद, होमियोपैथी व यूनानी) में तीन माह के लिए दवा खरीदने की अनुमति दे दी है। इन औषधालयों में तीन साल से दवा की आपूर्ति नहीं हो रही थी। चिकित्सक मरीजों को सिर्फ पुर्जा ही थमा रहे थे। अब जब मात्र तीन माह के लिए दवा उपलब्ध कराए जाने को लेकर यहां के चिकित्सकों में काफी रोष है। इनका मानना है कि तीन माह के बाद यहां फिर वही स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। ऐसा इसलिए कि नए वित्तीय वर्ष में आवंटन जारी होने में ही दो माह बीत जाएंगे और इसके बाद दवा खरीदने की प्रक्रिया में भी समय लगेगा ही। इतना ही नहीं सीमित राशि को लेकर भी उनमें नाराजगी है। स्वास्थ्य सचिव द्वारा जारी आदेश के अनुसार, एक होमियोपैथी औषधालय को तीन माह की दवा के लिए मात्र पांच सौ रुपए, यूनानी के लिए पांच हजार रुपए तथा आयुर्वेद के लिए साढ़े सात हजार रुपए मिलेंगे। उधर प्रदेश में बंद पड़े औषधालयों पर अगर नजर डालें तो पता चलता है कि यहां प्रत्येक साल लाखों रुपये खर्च हो रहे हैं। इनमें न तो डाक्टर हैं, न ही कंपाउंडर। किसी में तृतीय या चतुर्थ श्रेणी के इक्के-दुक्के कर्मी कार्यरत हैं तो किसी में वे भी नहीं नजर आते। फिर भी सरकार भाड़े पर चलाए जा रहे इन औषधालयों पर लाखों रुपये खर्च कर रही है। स्वास्थ्य विभाग के उप सचिव सियाशरण पासवान ने ही आयुष के प्रभारी उप सचिव राम कुमार सिन्हा का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराया है। उन्होंने कहा है कि ऐसे कई स्थानों पर तो औषधालय कार्यरत नहीं रहने के बावजूद किराये पर भवन लेकर रखे गये हैं तथा किराये का भुगतान किया जा रहा है यह राजकोष का अलाभकारी और बेकार खर्च है। भविष्य में महालेखाकार द्वारा इस पर अंकेक्षण आपत्ति की जा सकती है। दरअसल, राज्य में आयुष चिकित्सकों और कंपाउंडरों की भारी कमी है। आयुष चिकित्सकों के सृजित 401 पदों के विरुद्ध मात्र 100 चिकित्सक कार्यरत हैं। इनमें से भी 25 से अधिक प्रशासनिक पदों पर कार्यरत हैं। राज्य गठन के बाद से यहां चिकित्सकों और अन्य कर्मियों की नियुक्ति नहीं हुई है। दूसरी तरफ, ये केंद्र बंद करने के बजाय भाड़े के मकान में अभी तक चलाए जा रहे हैं। जब स्वास्थ्य विभाग से इन औषधालयों के लिए आवंटन की मांग की गई तो पता चला कि इनमें तो न तो चिकित्सक कार्यरत हैं और न ही कंपाउंडर। छानबीन से पता चला कि सभी जिलों में ऐसे कई केंद्र संचालित हैं। ये सभी किराये के मकान में चल रहे हैं और पूर्व में मकान किराये का भुगतान भी होता रहा है। बताया जाता है कि खूंटी के रनिया, जामुदाग, खूंटी, कर्रा, नरकोपी, दुमका के कठलिया, रानीग्राम, अमरपुर, रामगढ़, जामताड़ा के चैनपुर, नाला, करमाटांड़, अंबा, ओबिया, अफजलपुर, पश्चिमी सिंहभूम के बारीजल, बड़ाजामदा, झींकपानी, पुरुनिया, बलंडिया, पूर्वी सिंहभूम के अंगड़ापाड़ा, संकरदा, स्वांसपुर, गंडानाटा, मुसाबनी, लातेहार के रुद्रजयंती, सरायडीह, मनिका, धनबाद के महुलबनी, गोड्डा के बोआरीजोर, राजाभीठा, देवघर के बसहां, गढ़वा के मझिआंव, रंका, भवनाथपुर, शरबतपहाड़, रमकंडा,कांडी, कोडरमा के मरकच्चो, सतगांवा, मे समोहना, नवाडीह, वीरजमास, सिमडेगा के ठेठइटांगर, बोलवा, लचरागढ़, लसिया, बानो, बांसजोर में ये औषधालय हैं

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