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नव परिवर्तनों के दौर में हिन्दी ब्लॉगिंग”(“Contest”)

yuva lekhak(AGE-16 SAAL)
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एक बार फिर 14 सितंबर को हिन्दी दिवस आ रहा है। वैसे तो हमें लिखते लिखते दो वर्ष से ऊपर का समय हो गया है पर पिछले एक साल से इंटरनेट पर ब्लाग लिखते लिखते अनेक ऐसे अनुभव हैं जिन्होंने समाज के शिखर पुरुषों की उन वास्तविकताओं की अनुभूति करवाई जिनकी पहले कल्पना ही हम करते थे। मूल बात यह है कि शिखर पुरुष हिन्दी में कला, साहित्य, पत्रकारिता था अन्य रचना क्षेत्र में अपने साथ लेखक को चाटुकारित की कीमत पर अपने साथ जोड़ना चाहते हैं। नतीजा यह है कि उनके ऐजेंडे पर लिखने वाले लिपिक तो मिल जाते हैं पर स्वतंत्र लेखक उनकी तरफ झांकते भी नहीं है। हिन्दी दिवस पर हम बहुत लिख चुके पर लगता है कि फिर भी कुछ छूट रहा है। आज हमारे बीस ब्लाग का समूह अनुमान के अनुसार एक दिन आठ सौ पाठक/पाठक संख्या को पार कर गया। जिस गति से यह चल रहा है 12 सौ तक पहुंचने की भी संभावना लगती है। यकीनन यह अब तक की सबसे बड़ी संख्या है। करीब करीब सभी ब्लाग अपने पुराने कीर्तिमानों से बहुत आगे निकल रहे हैं। सच कहें तो हिन्दी के साथ कोई भी शब्द जोड़कर इंटरनेट पर मातृभाषा में पढ़ने वाले आज के लोग हमसे अधिक भाग्यशाली हैं कि उन्हें कुछ पढ़ने को मिल जाता है। हम हिन्दी ब्लाग लेखक मिलों और पाठकों से कुछ कहना चाहते हैं पर क्या? लिखते लिखते कुछ भी लिख जायेंगे। यकीन मानिए वह निरर्थक नहीं होगा। आज मौका अच्छा लगता है क्योंकि हिन्दी दिवस कोई रोज रोज थोड़े ही आता है। कल से संख्या फिर सिमटने लगेगी। इंटरनेट खोलने पर पांच साल पहले हमें निराशा हाथ लगती थी। कुछ लिखा नहीं मिलता था। ब्लाग मिला तो लिखना इसलिये नहीं शुरु किया कि किसी को पढ़ाना है बल्कि आत्म संतुष्टि का भाव था। स्वतंत्र रूप से लिखने का भाव! यह अलग बात है कि प्रायोजित हिन्दी बाज़ार हम जैसे इंटरनेट लेखकों को प्रयोक्ता मानता है। यह हम अपने पाठकों को बता दें कि आतंकवाद को एक व्यापार मानने का सिद्धांत इसी ब्लाग समूह पर दिया गया। यह भी माना गया है कि भारत में हो या भारत से बाहर विश्व का आतंकवाद बाज़ार समूहों के धन से प्रायोजित हो सकता है जो अपनी अवैध गतिविधियों से जनता और राज्य का ध्यान बंटाने के लिये करते हैं। देश में गरीबी और भ्रष्टाचार है यह सच है! जनता में आक्रोश है यह भी छिपा हुआ नहीं है, मगर गोलियां और बम खरीदने की क्षमता हमारे आम लोगों में नहीं है। भूखे बंदूक उठायेंगे यह सिद्धांत हमेशा धोखा लगता रहा है। अब छत्तीसगढ़ में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के नक्सलियों को आर्थिक मदद देने के आरोप लगने से यह प्रमाणित हो गया है। इस पर अनेक बहसें इंटरनेट पर हुईं। जब हमने आतंकवादियों के आर्थिक स्तोत्रों के बारे में प्रश्न उठाया तो कोई जवाब नहीं दे सका। अनेक सुधि टिप्पणीकारों ने इसका समर्थन कर अनेक उदाहरण भी दिये कि किस तरह जिस क्षेत्र में आतंकवाद है वही अवैध काम भी अधिक होते है। हम यहां स्पष्ट रूप से कहना चाहते हैं कि आप देश के जिन भी अंग्रेजी और हिन्दी के नामी लेखकों, बुद्धिजीवियों के साथ बहसकर्ताओं को टीवी या समाचार पत्रों में देखते सुनते हैं वह कहीं न कहंी इंटरनेट लेखकों की नयी धारा से प्रभावित होकर अपना नाम कर रहे हैं। वह हमारा नाम नहीं देते। गांधी जी को नोबल न मिलने का मामला हो या ओबामा को नोबल मिलने वाला मजाक या आतंकवाद को व्यापार मानने का सिद्धांत हो, इन विषयों पर इस लेखक के पाठ और विचार प्रचार माध्यमों में दिखाई दे रहे हैं। क्रिकेट को खेल की बजाय व्यापार मानने की बात अब अनेक लोग स्वीकारने लगे हैं। हम यहां साफ बता दें कि आप अगर नये विचार और नया चिंत्तन0तो इस समूह का कोई ब्लाग अपने यहां ईमेल का पता दर्ज कर मंगा लें। अन्ना हज़ारे का आंदोलन हो या बाबा रामदेव का अभियान, इन पर हमारी राय आम धारा से मेल नहीं खाती। कुछ पाठक नाराज होते हैं पर कुछ सराहते हैं। सच बात तो यह है कि हम दबी जुबान में लिखते हैं क्योंकि यहां आम पाठकों से कोई समर्थन नहीं है। अगर पाठकों से प्रोत्साहन हो तो शायद हम किसी की परवाह नहीं करें। अगर हमारे किसी ब्लाग के दस हजार पाठक प्रतिदिन हो जायें तो हम ऐसा लिखें कि देश के नामीगिरामी बाज़ार से प्रायोजित बुद्धिजीवी दांतों तले उंगलियां दबा लें। अधिक पाठक होने पर ं वहहमारे पाठ और विचार अपने नाम करने के प्रयास भी नहीं करेंगे। ा अगर हिन्दी के पाठक चाहते हैं कि इंटरनेट पर हिन्दी में मौलिक, तयशुदा विचाराधारा से प्रथक तथा स्वतंत्र लेखन से सुजज्जित सृजन हो तो उन्हें टिप्पणियों अवश्य करना चाहिए। बहरहाल इस हिन्दी दिवस पर इस लेख में इतना ही। इस अवसर पर पाठकों और साथी ब्लाग लेखक मित्रों को बधाई।

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