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संकट में लालू, राजनैतिक कैरियर दांव पर

yuva lekhak(AGE-16 SAAL)
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बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और एक जमाने में राज्य के
ताकतवर राजनेता लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले से जुड़े
एक मामले में सीबीआई अदालत ने दोषी ठहराया है.
सजा का ऐलान तीन अक्तूबर को होगा. इस फैसले से लालू
का राजनैतिक कैरियर दांव पर लग गया है. सुप्रीम कोर्ट ने
राजनीति के शुद्धिकरण के लिए जो कदम उठाये हैं उसका पहला वार लालू पर और पहला असर बिहार में होने
जा रहा है. लालू की लोकसभा सदस्यता का खत्म होना लगभग
तय है. निश्चत तौर पर इससे बिहार के राजनीति में बहुत
पड़ा फर्क आएगा. राज्य में नए राजनीतिक समीकरण बनने
की सम्भावना है. सबसे बड़ा संकट राजद के भविष्य पर
दिखाई दे रहा है. नेपथ्य में रह कर पार्टी को बिखरने से बचाना बड़ी चुनौती होगी. चारा घोटाले के चर्चित मामलों में आरसी 20ए/96 शामिल
है. यह चाईबासा कोषागार से 37.70 करोड़ रुपये
की फर्जी निकासी से जुड़ा मामला है. चाईबासा तब
अविभाजित बिहार का हिस्सा था. इस मामले में लालू
प्रसाद, जगन्नाथ मिश्रा, कई पूर्व मंत्री व सांसद समेत 45
आरोपी थे. सभी को अदालत ने दोषी ठहराया है. इनमें से सात लोगों को तीन साल तक की कैद की सजा सुनायी गई है.
लालू इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील कर सकते हैं.
इस मामले में लालू प्रसाद पहले भी जेल जा चुके हैं. बिहार में कांग्रेसी शासनकाल में पशुपालन घोटाले की शुरूआत
हुई थी. मार्च 1990 में बिहार को कांग्रेस कुशासन से
छुटकारा मिला और सरकार की बागडोर जे.पी. आन्दोलन के
सिपाहियों में से एक के हाथ में
आयी तो लगा कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा मगर हुआ
ठीक इसके विपरित. भ्रष्टाचार अपनी सारी सीमाएं लांघ गया. रोज नए घोटाले सामने आने लगे. वन घोटाला,
अलकतरा घोटाला, दवा घोटाला, जमीन घोटाला और न जाने
और कितने. इन घोटालों में निस्संदेह पशुपालन
घोटाला सर्वोपरी था. इसमें सत्ता में बैठे राजनीतिज्ञ,
नौकरशाहों, माफिया, ठेकेदारों व अन्य ने सरकारी खजाने से
करोड़ों रूपये का घोटाला किया. सावर्जनिक धन के लूट का यह खेल निरंतर और निर्बाध रूप से कई वर्षों तक चला.
सरकारी खजाने में से बड़ी राशि के कथित गोलमाल के
लिए अपनाये गये तरीके और कारगुजारियां स्तब्ध करनेवाले
थे. जाली दावों और नकली दस्तावेजों के आधार पर
सरकारी कोष से कथित रूप से काफी पैसा निकाला गया था.
बिहार सरकार के पशुपालन विभाग ने स्कूटर, मोपेड से गाय- भैंस ढोए थे. चारा की आपूर्ति भी स्कूटर से की गयी थी.
बाद में फर्जी आपूर्ति दिखा कर कोषागारों से
अरबों की अवैध निकासी कर ली गयी थी. यह
पहला ऐसा मामला है जिसमे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से
पत्रकारिता की भूमिका भी पायी गयी. चारा घोटाले के
कुल 64 मामलों में 53 मामले झारखण्ड के थे. पशुपालन विभाग में पैसे की गड़बड़ी की पहली आशंका सीएजी ने सन
1985 में व्यक्त की थी. अगर शुरू में ही इस पर रोक लग
जाती, तो इसका इतना विस्तार नहीं होता. घोटाला प्रकाश
में धीरे-धीरे आया और जांच के बाद पता चला कि ये
सिलसिला वर्षों से चल रहा था. उसके बाद भी इसकी जांच
को रोकने की पूरी-पूरी कोशिश की गई, लेकिन पटना हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की दखल से यह
मामला सीबीआई को सौंपा गया. यह घोटाला करीब 950
करोड़ रूपये का है. पर कोई पक्के तौर पर नहीं कह
सकता कि घपला कितनी रकम का है. जाँच में सीबीआई ने
622 करोड़ के घोटाले को सही पाया है. पशुपालन घोटाले
की सीबीआई जाँच के दौरान जो सबूत सामने आये उनसे साफ़ हो गया था की लालू प्रसाद न केवल इस घोटाले में लिप्त थे,
बल्कि वे ही इसके असली सूत्रधार थे. घोटाले के शुरुआत से
ही लालू यादव किसी न किसी रूप में जुड़े थे. अंततः 17 साल
नौ महीने बाद लालू यादव को उसी चारा घोटाले के लिए
दोषी करार दे दिया गया है जिसकी जांच का आदेश बतौर
मुख्यमंत्री खुद उन्होंने ही दिया था. लालू भारतीय राजनीति के सबसे लोकप्रिय और
विवादित शख्स रहे हैं. लोक नायक जयप्रकाश नारायण ने
1974 में बिहार में ऊंचे पदों पर भ्रष्टाचार और सार्वजनिक
जीवन में सत्यनिष्ठा के अभाव के खिलाफ आंदोलन
का बिगुल बजाया था. उन्होंने युवाओं को प्रेरित
किया जिन्होंने कसम ली कि ‘भ्रष्टाचार मिटाना है, नया बिहार बनाना है’. लालू प्रसाद उसी जेपी आंदोलन के
उपज हैं. लालू ने अपने 15 साल के शासन के दौरान बिहार
को एक मंच के रूप में इस्तेमाल किया. भ्रष्टाचार, शासन के
प्रति बेरुखी और विकास की अनदेखी ने
उनकी लुटिया डुबो दी. विकास और आर्थिक
गतिविधियों के अभाव ने राज्य में लूट की संस्कृति विकसित की. बिहार गर्त में पहुँच गया.
राज्य में अराजकता फैलने से आप लोगों का उनसे मोहभंग
हो गया और बिहार की सत्ता उनके हाथ से निकल गयी.
अपने राजनीतिक कैरियर को दोबारा पटरी पर लाने के
लिए लालू इनदिनों पूरी जोर आजमाईश कर रहे थे. नीतीश
कुमार की बढ़ती अलोकप्रियता के कारण लालू यादव के लिए बेहतर ज़मीन तैयार हो रही थी, लेकिन कोर्ट के
फ़ैसले ने उन्हें परेशानी में डाल दिया है. उनका राजनीतिक
कैरियर दांव पर लग गया है. सुप्रीम कोर्ट ने के हालिया फैसले के मद्देनज़र उनके सामने
सांसद के रूप में अयोग्य होने का खतरा पैदा हो गया है. इसके
साथ ही इस बात का भी अंदेशा है कि वह कम से कम छह साल
तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने
कहा था कि किसी भी मामले में कोई भी कोर्ट अगर
किसी सांसद या विधायक को दो साल से अधिक की सजा सुनाती है, तो उसकी सदस्यता तत्काल प्रभाव से
रद्द हो जायेगी. ऊपरी अदालत में अपील के नाम पर
उसकी सदस्यता बची नहीं रहेगी. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले
को सभी निर्वाचित जनप्रप्रतिनिधियों पर तत्काल
प्रभाव से लागू करने का आदेश भी दिया. लालू पहले भी जेल
गये हैं. इससे पहले न्यायालय ने जब उनके खिलाफ गिरफ़्तारी वारंट जारी किया था तब उन्हें मुख्यमंत्री पद
छोड़ना पड़ा था. उस समय उन्होंने
अपनी पत्नी राबड़ी देवी को अपना उत्तराधिकारी बनाया था और
नेपथ्य से सरकार चलाते रहे. तब परिस्थितियाँ उनके
अनुकूल थीं. लालू और उनकी पार्टी के लिए यह कठिन
समय है. लालू प्रसाद को अपने उत्तराधिकारी के रूप में किसी को तैयार करना होगा. यह देखना दिलचस्प
होगा की लालू के राजनैतिक विरासत को कौन संभालता है
और इस ऐतिहासिक फैसले से भ्रष्टाचार में संलिप्त नेताओं
को कितना सबक मिलता है.

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