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दिल्ली में सरकार बनाने की जोड़तोड़ से अलग रहते हुए ‘आप’ लोकसभा चुनाव के जरिए राजनीति की मुख्यभूमि में छलांग लगाने जा रही है। अरविंद केजरीवाल के इस साहसिक और जोखिम भरे फैसले का यकीनन देशभर में स्वागत होगा। महज एक साल पहले पैदा हुए और घुटनों पर चलते हुए राजनीति के इस शिशु ने तमाम कद्दावर नेताओं को जो पाठ पढ़ाया है, वह भारतीय राजनीति की ऐसी युगांतरकारी घटना है जिसका बेसब्री से इंतजार था। कांग्रेस, बीजेपी जैसी राष्ट्रीय पार्टियां हों या उनके मुकाबिल होने का मन बना रहा तीसरा मोर्चा या फेडरल फ्रंट- ‘आप’ के आगे सभी की आभा मंद है। दिल्ली में सरकार बने या नहीं, इससे देश को फिलहाल कोई फर्क नहीं पड़ने जा रहा है। आखिरकार, देश चलाने वाली संसद को हमारे माननीयों ने लगातार ठप कर रखा है फिर भी देश तो चल ही रहा है। ‘आप’ के पीछे जनसैलाब इसलिए नहीं उमड़ा था कि अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री होकर रह जाएं। बदलाव की चाह देश के पोर-पोर में समा गई है- भावनाओं और पहचान की विकृत राजनीति की सड़ांध लोकतंत्र में घातक इनफेक्शन का जहर घोल रही है। विकास की आड़ में भ्रष्टाचार और हक की जगह रिश्वत से सत्ता खरीदने की तिकड़में नाकाबिले बर्दाश्त हो गई हैं। ऐसे में ‘आप’ की मूल्यों और सिद्धांत आधारित राजनीति में लोग अपनी आकांक्षाओं का अक्स देख मोहित हो रहे हैं तो इसमें कैसी हैरानी! हैरानी इस पर जरूर है कि मतदान के दिन तक गटर और बरसात के कीड़े बता कर जिस ‘आप’ के अस्तित्व तक से इंकार किया जा रहा था, आज कांग्रेस समर्थन का झंडा उठाए उसकी चिरौरी करती नजर आ रही है। झारखंड में सत्ता के लिए हर हथकंडे अपना चुकी बीजेपी आदर्श का झंडा लहरा रही है कि चाहे विपक्ष में बैठना हो, पर तोड़फोड़ कर दिल्ली में सरकार नहीं बनाएंगे। यह सब ‘आप इफेक्ट’ है। शुक्र है, अभी शुरूआत ही हुई है। ‘आप’ की यह चिंता स्वाभाविक है कि दिल्ली में दूसरे चुनाव का मौका अगर लोकसभा चुनावों के साथ आया तो उसे संसाधनों की समस्या से गुजरना पड़ेगा। लेकिन, उसे आम आदमी के उस समर्पण को ताकत बनाना चाहिए जिसकी बदौलत उसने दिल्ली की बाजी मारी। ‘आप’ की शक्ति उसके विचार, संकल्प और समर्पण में छुपी है जो तमाम भौतिक संसाधनों पर भारी है। आश्र्चय नहीं कि कश्मीर की हुर्रियत जैसी अलगाववादी ताकतें भी ‘आप’ के गुण गाती नजर आ रही हैं और उम्मीद जता रही हैं कि काश, घाटी में भी उसके कदम पड़ें। अरविंद केजरीवाल ने लोकसभा की चुनिंदा सीटों के अलावा हरियाणा और महाराष्ट्र को खास निशाना बनाया है- यह फैसला कांग्रेस और बीजेपी दोनों की नींद उड़ा कर रख देगा। हरियाणा में प्रताड़ित आईएएस ऑफिसर अशोक खेमका और उत्तर प्रदेश में बालू माफिया से टकराने वाली दुर्गा शक्ति नागपाल को न्योता देकर ‘आप’
ने राजनीति में नयी तरह की शक्ल पेश करने की शुरुआत की है। ग्रामीण परिवेश से ताकत जुटाने वाले पारंपरिक राजनेताओं की तुलना में ऐसे प्रयोग कितने सफल होते हैं, यह तो समय बताएगा पर इतना तय है कि केवल कांग्रेस या बीजेपी ही नहीं, देश की तमाम पारंपरिक पार्टियों को पहली बार अलग ढंग की राजनीतिक चुनौती मिलने जा रही है जिससे निपटने में उनके तमाम अनुभव और हुनर की परीक्षा हो जाएगी।
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