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आप – परिवर्तन या पलायन

yuva lekhak(AGE-16 SAAL)
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खुद को सबसे
अलग ,
सर्वश्रेष्ठ,
एकमात्र
देशभक्त
का तमगा देने वाली आम आदमी पार्टी का सच में क्या आम आदमी से कोई
रिश्ता है ? जब यह दल नया – नया बना था तो अन्य
लोगों की तरह मुझे भी लगा कि शायद यह एक बड़े
परिवर्तन की शुरुवात है। किन्तु बहुत जल्द
ही अपनी नीतियों, कार्यपद्धति और उमीदवारों के
चयन से स्वघोषित देश भक्त अरविंद केजरीवाल ने यह साबित कर दिया कि आम आदमी पार्टी अन्य
राजनीतिक पार्टियों से अलग बेशक हो पर श्रेष्ठ कतई
नहीं है। यह एक ऐसी पार्टी है जिसके
सदस्यों की संख्या बहुत है , पर कोई व्यवस्थित
ढांचा नहीं है। भीड़ की तरह लोगों को जोड़
लिया गया है , जिनकी न तो कोई विचारधारा है न उत्तरदायित्व , है तो सिर्फ चुनाव लड़ने की लालसा।
कांग्रेस और भाजपा सहित अन्य राजनितिक दलो पर
अरविंद केजरीवाल और उनकी तथाकथित “आम”
आदमी पार्टी जिस तरह से आरोप लगाते हैं उससे
अरविंद केजरीवाल अपनी ही अहमियत खोते जा रहे
हैं। आम आदमी पार्टी बनने से पहले जो अरविंद अन्ना हज़ारे के साथ लोकपाल आंदोलन में शामिल थे
उनकी जो इज्जत देशवासियों के मन में थी आज
उन्ही देशवासियों के मन में केजरीवाल की मंशा के
प्रति संदेह है। दिल्ली में शीला दीक्षित और उनकी सरकार पर
भ्रष्टाचार के अनेक आरोपों के दम पर , शीला दीक्षित
के खिलाफ सबूतों के दम पर चुनाव जितने वाले अरविंद
केजरीवाल ने चुनाव के तुरंत बाद न सिर्फ कांग्रेस के
समर्थन से सरकार बनायी बल्कि शीला दीक्षित के
भ्रष्टाचारी शासन पर भी चुप्पी साध ली। यही पहला और बड़ा धक्का था उन सभी के लिए
जिन्होंने एक परिवर्तन की उम्मीद से आम
आदमी पार्टी को वोट दिया था। मीडिया द्वारा और
जनता द्वारा अरविंद केजरीवाल से इस बाबत सवाल करने
पर उन्होंने बड़े मंझे हुए नेताओं की तरह चुनाव पूर्व
शीला दीक्षित के खिलाफ प्रस्तुत किये सबूतों को नाकाफी बताते हुए शीला दीक्षित के
खिलाफ कार्यवाही को टाल दिया , आज केजरीवाल
की उसी राजनितिक चाल का नतीज़ा है
कि शीला दीक्षित को केरल का राजयपाल
बना दिया गया है। क्या सच में केजरीवाल भ्रष्टाचार के
खिलाफ थे? क्या उनकी नीयत साफ़ थी ? खैर ये तो बस शुरुआत थी , उसके बाद अरविंद केजरीवाल एक के बाद
एक जनता का भरोसा तोड़ते गये। उनके कानून
मंत्री विदेशी महिलाओं के साथ बदसलूकी करते पकडे
गये , उन पर दिल्ली उच्च न्यायलय में आरोप
भी साबित हुआ किन्तु केजरीवाल ने अपने कानून
मंत्री का न सिर्फ समर्थन किया बल्कि अरविंद और उनकी पार्टी के विरोध – प्रदर्शन के कारण
दिल्लीवासियों को अराजकता और
अव्यवस्था का सामना भी करना पड़ा। क्या अरविंद
केजरीवाल ने कभी भी सच में आम
आदमी की दिक्कतों को समझा ? अरविंद जी मैले –
कुचैले कपडे पहनकर , मफरल लपेटकर ही कोई आम आदमी नही बन जाता , यदि आपको सच में आम
आदमी की कोई परवाह होती तो अपने स्वार्थ के लिए
आप दिल्लीवासियों को यूँ परेशान नहीं करते। किन
उम्मीदों से आपको वोट दिया था दिल्ली वालों ने ,
और क्या किया आपने , सिर्फ कोरी घोषणाएं ? न
पानी का बिल कम हुआ न बिजली का , न ठेके पर काम करने वालो की सुनी आपने न कानून व्यवस्था के लिए
कुछ किया। कैसे करते सामने लोकसभा चुनाव जो थे।
जिसके लिए एक सुनियोजित तरीके से आपने
दिल्ली की सरकार को गिरा दिया। “लोकपाल के
लिए हज़ार बार मुख्यमंत्री की कुर्सी कुर्बान “ आप
की इन दलीलों पर कौन भरोसा करेगा ? कौन इसे त्याग मानेगा ? कैसा त्याग ? अरविंद जी आप कोई भी एक
मुद्दा बनाकर , उसे “अदर एक्सट्रीम “ तक ले जाकर
जिम्मेदारी से हटना चाह रहे थे , सो हट गये। यह कोई
त्याग नही पलायन है। “हिट एंड रन “ आपका मूल
स्वाभाव है। अन्ना के जन आंदोलन के बाद जब आपने
राजनीति में उतरने का निर्णय लिया तब आप कांग्रेस पर एक के बाद एक आरोप लगाते रहे। गम्भीर आरोप
लगाकर सबको भ्रष्ट कहकर मुद्दे को भूल जाना और
मामले को छोड़ देना अरविंद केजरीवाल के लिए सहज
सामान्य बात है। सरकार बनाना भी “हिट” जैसा था और
फिर इस्तीफा देना “रन” जैसा। आम आदमी की पार्टी में सभी खास
लोगों को उम्मीदवार बनाना क्या साबित करता है ?
जो लोग आम आदमी पार्टी से अन्ना के आंदोलन के
समय से जुड़े रहे , जिन्होंने ज़मीनी स्तर पर कार्य
किया उन्हें उम्मीदवार न बनाकर आप सभी जाने – माने
चेहरो को उम्मीदवार बनाते नज़र आये। बताईये कहाँ थे आपके ये तथाकथित देशभक्त पिछले दस सालो से ?
कहाँ थे ये देश भक्त अन्ना आंदोलन के समय ? जो आज
अपनी बड़ी – बड़ी नौकरियां छोड़कर लोकसभा चुनाव
में उतर रहे हैं आपके टिकट पर। क्या ये हैं भारत के आम
आदमी ? कांग्रेस या भाजपा के नेताओं के
उद्योगपतियों से सम्बन्ध पर आप सवाल दागते हैं , और खुद आपकी पार्टी बड़े – बड़े व्यापारियों ,
मालिकों बड़े – बड़े अधिकारियों को टिकट देती है
उसका क्या जवाब है आपके पास ? आप करे तो चमत्कार ,
कोई और करे तो भ्रष्टाचार ? आप हमेशा से मीडिया पर
आरोप लगाते रहे हैं की मीडिया को भाजपा और कांग्रेस
ने खरीद लिया है , पर जब आप खुद एक पत्रकार से सेटिंग करते नज़र आये तो आप कहते है
इतना तो चलता है। वाह क्या बात है , और आश्चर्य
तो तब होता है जब आप भगत सिंह को अपना आदर्श
बताते हुए एक पत्रकार से कहते हुए दिखे कि कांग्रेस
और भाजपा वालो ने भगतसिंह को आतंकवादी घोषित
कर दिया पर मैं उन्हें शहीद मनाता हूँ। अरविंद जी क्या आप नही जानते आपकी पार्टी के संस्थापक
सदस्य प्रशांत भूषण ही वो शख्स हैं जो सुप्रीम कोर्ट में
भगत सिंह को देशभक्त मानने के खिलाफ लड़ रहे हैं ,
जी हाँ आपकी पार्टी के अहम् सदस्यों ने ही भगत सिंह
को आतंकवादी घोषित किया है।
क्या आपको जरा भी संकोच नही होता इस तरह लोगो की भावनाओं से खेलते हुए ? आप किस आधार पर कहते हैं कि आप परिवर्तन
लाना चाहते हैं ? सत्ता पाने की जो हड़बड़ाहट आम
आदमी पार्टी में दिखती है वो आज तक
किसी भी राजनितिक दल में दृष्टिगत नही हुई।
क्या शर्म की बात है की आप मुख़्तार अंसारी जैसे नेताओं
तक का साथ लेने को तैयार हैं, क्या इन्ही के दम पर भ्रष्टाचार दूर करेंगे? महज एक साल हुए हैं
आपकी पार्टी बने और आप प्रधानमंत्री की कुर्सी पर
नज़र रखे हुए हैं ? यदि सच में आप में कोई
जिम्मेवारी होती तो आप पहले दिल्ली की सरकार
को चला कर दिखाते , जो कुछ था आपके पास उस से खुद
को साबित करते , पर नही आप तो चंद महीनो में ही मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बन जाना चाहते हैं। महज़
49 दिन आपने दिल्ली की सरकार चलाई और सालो से
गुज़रात में सरकार चला रहे नरेन्द्र मोदी , महारष्ट्र में
सालों से चल रहे कांग्रेस के शासन का निरीक्षण करने
निकल पड़े , किस आधार पर ? और जब गुजरात में
आपको कोई बड़ा मुद्दा नही मिला तो आपके कार्यकर्ता दिल्ली , उत्तरप्रदेश सहित देश के कई
हिस्सों में स्थापित भाजपा के कार्यालय में पहुँच गए
तोड़ – फोड़ करने , हंगामा करने , यह
कैसी अराजकता फैला रहे हैं आप लोग ? महारष्ट्र में
आपके कार्यकर्ताओं ने कितनी तोड़ – फोड़ की ,
सुर्ख़ियों में रहने के लिए क्या देश में वैमनस्य फैलाना सही है। सत्ता की चाह रखना बुरी बात नही है
लेकिन उसे पाने के लिए जो रास्ता आम
आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल ने अपनाया वह
अवश्य ही निंदनीय है। भाजपा और कांग्रेस को छोड़ दे
तो भारत में अनेको राजनितिक पार्टियां है जो कई
सालो से अलग – अलग राज्यों में सरकारें बनाती आयी हैं , लोकसभा चुनाव में भी भाग लेती हैं , पर सत्ता पाने
की जो हड़बड़ाहट आम आदमी पार्टी में दिखती है
वो किसी अन्य में नही। शायद आपके इसी रवैये
कि वजह से अन्ना ने आपका साथ छोड़ दिया।
वो आपकी इस महत्वाकांक्षी स्वाभाव से अवगत हो गये
होंगे , जिसे हम लोग अब देख पा रहे हैं। एक के बाद एक वो सभी लोग आपकी पार्टी से
उम्मीदवार बनाये जा रहें है जो भाजपा या कांग्रेस
की विचारधारा के विरोधी हैं , जो राष्ट्रवाद के
विरोधी हैं , जी अराजकता के समर्थक हैं। इस से एक
बात और ज़ाहिर होती है कि आपके ऐसे
सभी उम्मीदवार मीडिया में सुर्खियां बनकर छाये रहे , कांग्रेस और भाजपा कि सरकारों के विरुद्ध समाचार
फैलाते रहे , और वो अंदर ही अंदर आप का समर्थन करते
रहे ,इस तरह से आपने अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए
मीडिया का भी दुरूपयोग किया , और आज अपने
उन्ही मीडिया बंधुओं को आप अपना प्रत्याशी बना कर
उन्हें उनके काम काम का इनाम दे रहे हैं। अरविंद जी बिना विचारधारा , बिना संगठन , बिना उद्देश्य
के बनी आम आदमी पार्टी का यही चेहरा सच है जो अब
सामने आ चुका है। आपका मकसद सिर्फ
सत्ता पाना रहा है , न कि परिवर्तन , यही वजह है
कि आज आपकी पार्टी के मतभेद खुल कर सामने आ रहे
हैं , सबको सुरक्षित सीट चाहिए , कोई परिवर्तन के लिए नही लड़ रहा चुनाव , सिर्फ एक मकसद है
सत्ता पाना। सभी को भ्रष्ट घोषित कर आप स्वयं
को ईमानदारी का प्रमाणपत्र देकर जो राजनीती कर रहे
है वह आपके नौसखियेपन को दर्शाता है।
राजनीती मुद्दो पर होती है , विचारधारा पर होती है न
कि सिर्फ आरोप लगाकर। हर किसी को गलत साबित करते – करते आज आप खुद अपना महत्व खोते
जा रहे हैं , आपसे ऐसे आरोप – प्रत्यारोप
की राजनीती कि उम्मीद नही थी , शायद आप भूल गये
कि जब हम किसी पर एक ऊँगली उठाते हैं तो तीन
उँगलियाँ हमारी तरफ भी उठती हैं।
सोमांश सूर्या
युवा लेखक (आरा)

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