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नेता जी हैं मौज में, जनता भूखी सोय

yuva lekhak(AGE-16 SAAL)
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आफ़त में है ज़िन्दगी, उलझे हैं हालात। कैसा यह जनतंत्र है, जहां न जन की बात।। नेता जी हैं मौज में, जनता भूखी सोय। झूठे वादे सब करें, कष्ट हरे ना कोय।। हंसी-ठिठोली है कहीं, कहीं बहे है नीर। महंगाई की मार से, टूट रहा है धीर।। मौसम देख चुनाव का, उमड़ा जन से प्यार। बदला-बदला लग रहा, फिर उनका व्यवहार।। राजनीति के खेल में, सबकी अपनी चाल। मुद्दों पर हावी दिखे, जाति-धर्म का जाल।। आंखों का पानी मरा, कहां बची है शर्म। सब के सब बिसरा गए, जनसेवा का कर्म।। जब तक कुर्सी ना मिली, देश-धर्म से प्रीत। सत्ता आयी हाथ जब, वही पुरानी रीत।। एक हि सांचे में ढले, नेता पक्ष-विपक्ष। मिलकर लूटे देश को, मक्कारी में दक्ष।। लोकतंत्र के पर्व का, खूब हुआ उपहास। दागी-बागी सब भले, शत्रु हो गए खास।। रातों-रात बदल गए, नेताओं के रंग कलतक जिसके साथ थे, आज उसी से जंग मौका आया हाथ में, दूर करें संताप। फिर बहुत पछताएंगे, मौन रहे जो आप।। जांच-परख कर देखिए, किसमें कितना खोट। सोच-समझ कर दीजिए, अपना-अपना वोट।।

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